🔆💥 जय श्री राम 🔆💥
“बातचीत से पिघलते रिश्ते ” कहानी ~ नमः वार्ता
परेशान इंद्र एक कमरे से दूसरे कमरे में चक्कर लगा रहे थे। क्रोध में बक्के जाने वाले शब्दों को शिल्पी लाख चाहने पर भी सुन नहीं पा रही थी। बस, चेहरे के भावों से अनुमान भर ही लगा पाई कि वे हालात को कोस रहे हैं। अमन की कारस्तानियों से दुखी इंद्र का जब परिस्थितियों पर नियंत्रण नहीं रहता था तो वह आसपास मौजूद किसी भी व्यक्ति में कोई न कोई कारण ढूंढ़ कर उसे ही कोसना शुरू कर देते।
यह आज की बात नहीं थी। अमन का यों देर रात घर आना, घर आ कर लैपटाप पर व्यस्त रहना, अब प्रतिदिन की दिनचर्या बन गई थी। कान से फोन चिपका कर यंत्रवत रोबोट की प्रकार उस के हाथ थाली से मुंह में रोटी के कौर पहुंचाते रहते। उस की दिनचर्या में मौजूद रिश्तों के केवल नाम भर ही थे, उन के प्रति न कोई भाव था न भाषा थी।
बच्चा से मांबाप को क्या चाहिए होता है, केवल प्यार, कुछ समय। लेकिन अमन को देख कर यों लगता कि समय रेत की मानिंद मुट्ठी से इतनी जल्दी फिसल गया कि मैं न तो अमन की तुतलाती बातों के रस का आनंद ले पाई और न ही उस के नन्हे कदम
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