शनिवार, 2 जुलाई 2022

नगरी सोच~ नमः वार्ता

नगरी सोच~ नमः वार्ता

 🔆🔆🔆 जय श्री राम 🔆🔆🔆🔆

 नगरी सोच 


हमारे रिश्ते को जैसे किसी की दृष्टि लग गई थी एक समय में लोग हमें सास बहू नहीं बल्कि मित्र कहा करते थे। हाथ में हाथ डाले हम बाजार में ऐसे घूमते जैसे कितनी पक्की सहेलियां है।

ना मेरी बहू कभी मेरी बात काटती और मैं भी हमेशा छोटी-छोटी बातें  दिल में नही रखा करती थी। 


हर दिवाली पर वह मुझसे मिलने आती । वर्ष भर में एक मिलन, वर्ष भर तक स्मरण रहती । हम सब मिलकर दिवाली की छोटी-छोटी तैयारियों में अपनी प्रसन्नियां ढूंढ लेते। मैं अपने आप को बड़ा भाग्यवान समझती थी कि मुझे इतनी अच्छी मिलनसार

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