🔆💥 जय श्री राम 🔆💥
रुपये का मूल्य
"माला!.इधर सीढ़ियों की रेलिंग थोड़ा रगड़ कर साफ़ कर।" ऊपर के कमरे से उतरती रमीला ने पहली सीढ़ी पर पाँव रखते ही माला को आदेश दी।
"जी दीदी!"
"आजकल तू पोंछा ठीक से नहीं लगाती!.दो बार लगाया कर।"
माला सर झुकाए बिना कोई उत्तर दिए हर एक कोने को चमकाने में लगी रही।
"तुझे मेरा टोकना बुरा तो नहीं लगता ना?"
"नहीं दीदी!"
"बुरा तो लगता ही होगा!.लेकिन केवल इसी सफाई के मैं तुझे हजार रुपए देती हूँ।"
अपने रुपयों की मूल्य समझाती सीढ़ियों से नीचे उतरती रमीला का पाँव अभी-अभी ताजा पोंछा लगे गीले फर्श पर अचानक फिसल गया लेकिन वहीं सीढ़ियों की रेलिंग पोंछती माला ने बिजली की फुर्ती से दौड़ कर रमीला को थाम लिया..
"संभल कर दीदी!"
माला का हाथ थामें रमिला की जान में जान आई। माला ने सहारा देकर रमीला को सोफे पर बैठाते हुए चिंता जताई..
"कहीं कोई चोट तो नहीं आई ना दीदी?"
"नहीं रे!. तूने बचा लिया!.वरना आज तो अस्पताल का मुँह देखना ही पड़ता।"
"कैसी बातें कर रही हैं दीदी!"
रमीला की सलामती की दुआ करती माला पुनः से पोंछा उठा सीढ़ियों की ओर चल पड़ी लेकिन रमीला ने एक बार पुनः से उसे टोका.. "अच्छा सुन!"..
"जी दीदी!"
"सीढ़ियों पर हफ्ते में दो दिन ही पोंछा लगाया कर!.और फर्श को भी अधिक रगड़ने की अवश्यत नहीं!"
अचानक मिले सिख ने रुपयों की मूल्य समाप्त कर दी थी। संकलित
_ध्यान दीजिए समाज का केवल एक वर्ग ही केवल अपनी श्रम शक्ति बेचने में सक्षम हैं (वेतनशुदा मजदूरी)। ये असमानताएं अथवा भौतिकवाद स्तरीकरण विशुद्ध रूप से आर्थिक भिन्नताओं पर आधारित नहीं है, अपितु अन्य स्थ्तियों और शक्ति की असमानताओं पर भी आधारित है। मैं दिनेश बरेजा आह्वान करता हु की आइए इस व्यापक रूप से फैले भौतिक धन इत्स्मरणि पर आधारित सामाजिक वर्गीकरण को दीपावली के शुभ अवसर पर समाप्त करे। सभी अपने हिन्दू श्रमिक साथियों को आदर सहित गले लगाए तथा अनुग्रहित करें_-दिनेश बरेजा प्रेषक-
दिनेश बरेजा
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