🔆🔆🔆 जय श्री राम🔆🔆🔆
!! प्रेम का स्पर्श !!
दिनेश एक दिन सुबह एक गांव की सड़क से निकला। एक भिखारी ने हाथ फैलाया। दिनेश ने अपनी जेब तलाशी लेकिन जेब खाली थे। वह सुबह घूमने निकला था और पैसे नहीं थे।
उसने भिखारी को कहा, मित्र ! क्षमा करो, मेरे पास पैसे नहीं हैं, तुम अवश्य दुख मानोगे। लेकिन मैं विवशता में पड़ गया हूं, पैसे मेरे पास नहीं हैं। उसके कंधे पर हाथ रखकर कहा, मित्र! क्षमा करो, पैसे मेरे पास नहीं हैं।
उस भिखारी ने कहा कोई बात नहीं। तुमने मित्र कहा, मुझे बहुत कुछ मिल गया और बहुत लोगों ने मुझे अब तक पैसे दिए थे लेकिन तुमने जो दिया है, वह किसी ने भी नहीं दिया था। मैं बहुत अनुगृहीत हूं।
एक शब्द प्रेम का– मित्र, उस भिखारी के हृदय में क्या निर्मित कर गया, क्या बन गया। दिनेश सोचने लगा। उस भिखारी का चेहरा परिवर्तित हो गया
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